गौला नदी के किनारे बसे 150 परिवारों को संभावित बाढ़ से बचाने के लिए प्रशासन ने उन्हें झोंपड़ियों सहित वहां से हटा दिया। मगर अब इन लोगों के सामने सबसे बड़ा सवाल है—रहेंगे कहां? फिलहाल खुला आसमान ही उनकी छत है और तपती दोपहरी में पेड़ों की छांव ही एकमात्र राहत। मंगलवार को हल्द्वानी रेलवे स्टेशन के पास जवाहरनगर के समीप नदी क्षेत्र का मंजर बेहद मार्मिक था—बिखरी प्लास्टिक की चादरें और टूटे बांस बताते थे कि यहां कभी दर्जनों झोंपड़ियां थीं।
ये परिवार कूड़ा बीनने या नदी से पत्थर निकालकर जीवनयापन करते थे। मानसून में बाढ़ के खतरे को देखते हुए प्रशासन और वन विभाग ने उन्हें हटाया, लेकिन उनके पुनर्वास की कोई व्यवस्था नहीं की गई। बिना कोई विकल्प दिए झोंपड़ियों को तोड़ने का निर्णय इन परिवारों के लिए त्रासदी बन गया। अब वे प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं कि उन्हें किसी स्थायी जगह बसाया जाए, जहां बार-बार उजड़ना न पड़े। आखिर सरकारी योजनाएं इन्हीं हालात के लिए हैं।