सुशीला तिवारी अस्पताल (एसटीएच) और उससे सटे महिला चिकित्सालय में जन्म लेने वाले नवजातों को गंभीर हालत में जीवन रक्षक उपचार के लिए कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। समय से पहले जन्म, कम वजन या सांस संबंधी समस्याओं के चलते जब बच्चों को नवजात गहन देखभाल इकाई (एनआईसीयू) की जरूरत होती है, तब बेड की सीमित उपलब्धता बड़ी चुनौती बन जाती है। एसटीएच में फिलहाल केवल 24 बेड का एनआईसीयू है, जबकि यहां रोजाना सात से आठ गंभीर नवजातों को भर्ती के लिए इंतजार करना पड़ता है।
कुमाऊं क्षेत्र का यह प्रमुख अस्पताल जिलेभर से रेफर हो रहे गंभीर नवजातों के लिए केंद्र है। महिला अस्पताल से आने वाले शिशुओं के लिए भी यही एकमात्र सहारा है, क्योंकि वहां का 12 बेड वाला एसएनसीयू स्टाफ की भारी कमी से जूझ रहा है। निजी अस्पतालों में एनआईसीयू का खर्च सामान्य परिवारों की पहुंच से बाहर है, जो रोजाना 8-10 हजार रुपये तक जाता है। ऐसे में सरकारी अस्पतालों में संसाधनों की कमी नवजातों की जिंदगी पर भारी पड़ रही है।