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पहाड़ों की रसोई बन रही सेहत का ख़तरा: महिलाओं में तेजी से बढ़ रहे सांस के रोग

पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाली अनेक महिलाएं आज भी पारंपरिक चूल्हों पर खाना बनाने पर निर्भर हैं, लेकिन भोजन के साथ-साथ वे धुएं का भारी मात्रा में सेवन भी कर रही हैं, जो उनके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है। राजकीय दून मेडिकल कॉलेज के टीबी और चेस्ट रोग विभाग में पहुंचने वाले मरीज इस स्थिति की गंभीरता को साफ दर्शाते हैं। विभाग के आंकड़ों के अनुसार, प्रतिदिन आने वाले सीओपीडी मरीजों में लगभग 80 प्रतिशत लोग पहाड़ी इलाकों से होते हैं, और इनमें महिलाओं की संख्या काफी अधिक है।

विशेषज्ञ बताते हैं कि क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) फेफड़ों को प्रभावित करने वाली ऐसी बीमारी है जो लंबे समय तक रहती है और धीरे-धीरे सांस लेने की क्षमता को कमजोर कर देती है। इसमें फेफड़ों में हवा का आना-जाना बाधित होने लगता है, जिससे मरीज को रोजमर्रा की गतिविधियों में भी कठिनाई महसूस होती है। इस बीमारी के प्रति जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से हर वर्ष 19 नवंबर को विश्व सीओपीडी दिवस मनाया जाता है।

दून अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. मानवेंद्र गर्ग का कहना है कि रोजाना ओपीडी में करीब 100 मरीज आते हैं, जिनमें से लगभग 60 सीओपीडी से पीड़ित होते हैं। पहाड़ों में इस बीमारी के प्रमुख कारणों में चूल्हे का घना धुआं, ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी और जंगलों में लगने वाली आग से उत्पन्न धुआं शामिल हैं, जो मिलकर लोगों की सेहत पर गंभीर प्रभाव डाल रहे हैं।

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