जहां आमतौर पर पंचायत चुनावों में प्रत्याशी जीतने के लिए लाखों रुपये खर्च करते हैं, वहीं उत्तराखंड के नैनीताल जिले के बेतालघाट विकासखंड स्थित ग्राम पंचायत तल्ला वर्धों एक अनूठी मिसाल पेश करता है। यहां ग्रामीण सर्वसम्मति से ग्राम प्रधान का चयन करते हैं, और अब तक कभी औपचारिक मतदान की नौबत नहीं आई।
आजादी के बाद से गांव में पंचायत चुनाव नहीं हुए हैं। पिछले साल पहली बार दो दावेदार—गीता मेहरा और अर्जुन सिंह—सामने आए, लेकिन ग्रामीणों ने तय किया कि चुनाव नहीं कराया जाएगा। टॉस के जरिए फैसला हुआ, जिसमें गीता मेहरा विजेता रहीं और ग्राम प्रधान बनीं। इस निर्णय से चुनाव पर होने वाला लाखों रुपये का खर्च बच गया।
गांव में ज़िला पंचायत और क्षेत्र पंचायत चुनाव तो होते हैं, लेकिन ग्राम प्रधान सामूहिक सहमति से चुना जाता है। पूर्व प्रधानों—गीता मेहरा, नंदन सिंह और हरीश मेहरा—का कहना है कि यह परंपरा न केवल गांव की एकता को मजबूत करती है, बल्कि विकास कार्यों में भी सहयोग बढ़ाती है। करीब 65 परिवारों वाला यह गांव सामाजिक समरसता और लोकतांत्रिक मूल्यों की एक प्रेरणादायक मिसाल बन चुका है।