उत्तराखंड की ऊँचाइयों पर, समुद्र तल से 11,750 फीट की ऊँचाई पर स्थित केदारनाथ धाम को भारत के पांच प्रमुख पीठों में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। इसे ‘हिमवत वैराग्य पीठ’ कहा जाता है, जहां पिंडदान और पितरों को तर्पण देना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। यह पवित्र स्थल नर-नारायण की तपोभूमि, पांडवों की आध्यात्मिक यात्रा और आदिगुरु शंकराचार्य के पुनरोद्धार से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि शिव ने नर-नारायण की तपस्या से प्रसन्न होकर यहां सदा के लिए वास का वचन दिया था।
पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत युद्ध के पश्चात पांडव अपने पापों से मुक्ति पाने शिव की शरण में आए थे। शिव भैंसे का रूप लेकर भूमिगत हो गए, पर भीम ने उनकी पूंछ पकड़ ली, जिससे उनका पृष्ठ भाग प्रकट हुआ – यही स्वयंभू लिंग के रूप में पूजित है। केदारनाथ में विशेष रूप से घी, दूध व चंदन से भगवान का अभिषेक किया जाता है। माना जाता है कि यहां भक्त सीधे भगवान से जुड़ते हैं और समस्त पापों से मुक्ति पाते हैं।