उत्तराखंड में जोशीमठ के बाद अब चमोली, गोपेश्वर, टिहरी, घनसाली और रुद्रप्रयाग में लगातार भू-धंसाव ने खतरे की घंटी बजा दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि बारिश का पानी पहाड़ों की जड़ों तक पहुंचकर मिट्टी को बहा रहा है, जिससे पर्वतीय भू-आकृतियां कमजोर हो रही हैं। इस वर्ष हुई अत्यधिक बारिश ने हालात और गंभीर कर दिए हैं। चमोली के नंदानगर से लेकर रुद्रप्रयाग व टिहरी तक कई कस्बों और गांवों में घरों में दरारें पड़ गई हैं।
गोपेश्वर की क्यूंजा घाटी और टिहरी के कई गांवों में भू-धंसाव और भूस्खलन से खतरा बढ़ गया है। घनसाली के घुत्तू क्षेत्र में मकानों में बड़ी दरारें दिखाई दे रही हैं। गढ़वाल विश्वविद्यालय क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। भूगर्भ विज्ञानी बताते हैं कि पहाड़ तीन तरह की भू-आकृतियों पर बने हैं—नदी-नालों के मलबे पर, ग्लेशियर जनित मलबे पर और गुरुत्वाकर्षण से बने ढालों पर। पुराने समय में इन स्थानों पर सपाट निर्माण हुए, जिसके नीचे मिट्टी और पत्थर मौजूद हैं। बारिश के दौरान मिट्टी खिसकने से भू-धंसाव बढ़ रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि हिमालयी क्षेत्रों में तापमान हर दशक 0.3 डिग्री बढ़ रहा है, जिससे ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। नदियों का रुख बदलने और अव्यवस्थित निर्माण से भी नीचे कटाव तेज हो रहा है। दूसरी ओर, मानसून के दौरान अब तीन तरह की हवाएं मिल रही हैं—हिंद महासागर से दक्षिण-पश्चिम, बंगाल की खाड़ी से दक्षिण-पूर्व और वेस्टर्न हिमालय से ठंडी हवाएं। इनसे कम दबाव के क्षेत्र बन रहे हैं, जिससे बादल फटना और बाढ़ जैसी आपदाएं बढ़ रही हैं। वैज्ञानिक तरीके से विकास कार्य न होने पर स्थिति और भयावह हो सकती है।
