उत्तराखंड के जंगलों से अब सागौन का दौर खत्म होने जा रहा है। वन विभाग ने तराई पूर्वी, तराई पश्चिमी, तराई केंद्रीय, हल्द्वानी, रामनगर और नैनीताल के क्षेत्रों में फैले सागौन के जंगलों को हटाने की योजना पर तेज़ी से काम शुरू कर दिया है। करीब 40 से 60 साल पहले लगाए गए ये सागौन के पौधे अब घने जंगलों का रूप ले चुके हैं, लेकिन ये जंगल वन्यजीवों के लिए वरदान के बजाय बाधा बन गए हैं।
वन विशेषज्ञों के अनुसार, सागौन मुख्य रूप से मध्य प्रदेश और दक्षिण भारत की जलवायु के अनुकूल है, जबकि उत्तराखंड की पारिस्थितिकी के लिए यह उपयुक्त नहीं रहा। इसकी एकरूपी बनावट में न तो पक्षियों के घोंसले बनते हैं, न ही मधुमक्खियां टिकती हैं, और न ही वन्यजीव लंबे समय तक यहां रुकते हैं।
अब सरकार मिश्रित वनों को फिर से विकसित करने की दिशा में बढ़ रही है, जो न केवल जल संरक्षण और तापमान संतुलन में मददगार होंगे, बल्कि जैव विविधता को भी बढ़ावा देंगे। विशेषज्ञों का सुझाव है कि तैयार पौधों की जगह सीधे बीज बोए जाएं, जिससे प्राकृतिक और टिकाऊ जंगल विकसित हो सकें।