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इकबाल कुरैशी: एक भूले-बिसरे सुरकार की अमर धुनों की कहानी

‘एक चमेली के मंडवे तले’—मोहम्मद रफी और आशा भोसले की आवाज़ में गाया यह गीत आज भी दिलों को छूता है। इसके पीछे जिनका संगीत था, वो नाम है इकबाल कुरैशी। भले ही आज की पीढ़ी इस नाम से अधिक परिचित न हो, लेकिन 50-60 के दशक के संगीत प्रेमियों के लिए उनका संगीत अमिट यादों जैसा है। इकबाल कुरैशी ने लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी, मुकेश, आशा भोसले और महेंद्र कपूर जैसे दिग्गज गायकों के साथ काम किया और कई बेहतरीन गीतों को स्वरबद्ध किया।

12 मई 1930 को औरंगाबाद में जन्मे कुरैशी ने कम उम्र में ही ऑल इंडिया रेडियो से गाने की शुरुआत की और सार्वजनिक आयोजनों में भी गाया करते थे। बाद में मुंबई आने के बाद वह IPTA (इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन) से जुड़े और नाटकों के लिए संगीत रचना शुरू की। वहीं उनकी मुलाकात शायर मखदूम मोहिउद्दीन और अभिनेता चंद्रशेखर से हुई, जिसने उनके करियर को नई दिशा दी। फिल्म ‘पंचायत’ से 1958 में फिल्मी करियर शुरू करने वाले कुरैशी का असली जादू फिल्म ‘चा चा चा’ के कालजयी गीतों में झलका, जो आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में ज़िंदा हैं।

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