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प्रदूषण का कहर: विलुप्त होती जैव विविधता और जड़ी-बूटियों पर मंडराता संकट

प्रदूषण और मानवीय गतिविधियों के कारण जैव विविधता पर गहरा संकट मंडरा रहा है। दुनियाभर में कई वनस्पतियों और जीव-जंतुओं की प्रजातियां तेजी से विलुप्ति की ओर बढ़ रही हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ रहा है। कुमाऊं विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. ललित तिवारी के अनुसार, जिले में 1,613 पौधों की प्रजातियां हैं, जिनमें 184 औषधीय महत्व की हैं। इनमें से कई दुर्लभ प्रजातियां—जैसे मैलाक्सिस एक्युमिनाटा, हेबेनारिया इंटरमीडिया, बर्रेरिस एरिस्टाटा और लिलियम पॉलीफाइलम—विलुप्त होने की कगार पर हैं।

प्रो. तिवारी बताते हैं कि वनों में आग लगना, प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन, अवैज्ञानिक संग्रहण, अतिक्रमण, जलवायु परिवर्तन, और आक्रामक प्रजातियों का फैलाव जैव विविधता को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। औषधीय पौधों की अत्यधिक मांग से उनके प्राकृतिक वास पर दबाव बढ़ा है। आयुर्वेद में वर्णित ‘अष्टवर्ग’ की आठ अत्यंत उपयोगी औषधीय जड़ी-बूटियां भी संकट में हैं। ऐसे में सतत विकास को अपनाना और जैव विविधता की रक्षा के लिए जन-जागरूकता जरूरी है।

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